इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता वस्तु एवं संवेदना की दृष्टि से नब्बे दशक की कविता का विकास है। यह पुस्तक समकालीन दौर की सामाजिक यथार्थ प्रवण,जनवादी,प्रतिरोधी कविता को काव्य चर्चा के केंद्र में लाने का प्रयास हाकी। इसमे कवि विमर्श द्वारा जीवन और कविता का वर्तमान परिदृश्य प्रस्तुत किया गया है। वातर्मान बहुआयामी यथार्थ के परिवेश में विकस्वर नयी काव्य संवेदना,सामाजिक सरोकार,प्रतिबद्धता और प्रतिरोधी चेतना के मूल में कवि का जीवन राग ही प्रकट हुआ है।
इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता वस्तु एवं संवेदना की दृष्टि से नब्बे दशक की कविता का विकास है। यह पुस्तक समकालीन दौर की सामाजिक यथार्थ प्रवण,जनवादी,प्रतिरोधी कविता को काव्य चर्चा के केंद्र में लाने का प्रयास हाकी। इसमे कवि विमर्श द्वारा जीवन और कविता का वर्तमान परिदृश्य प्रस्तुत किया गया है। वातर्मान बहुआयामी यथार्थ के परिवेश में विकस्वर नयी काव्य संवेदना,सामाजिक सरोकार,प्रतिबद्धता और प्रतिरोधी चेतना के मूल में कवि का जीवन राग ही प्रकट हुआ है।