मिथिलेश्वर के आत्मकथात्म्क उपन्यासों की शृंखला का यह तीसरा और अंतिम उपन्यास है। लेकिन अब तक की उनकी कृतियों में बेजोड़, बेमिसाल और यादगार कृति है। लेखक की प्रौढ़ लेखनी से सृजित यह कृति अपनी विशेषताओं और विलक्षणताओं की वजह से हिन्दी जगत के लिए न सिर्फ उल्लेखनीय है,बल्कि अपने प्रभाव में बेहद असरदार तथा श्रेष्ठ साहित्य के निकष पर भी कालजयी कृति है।
मिथिलेश्वर के आत्मकथात्म्क उपन्यासों की शृंखला का यह तीसरा और अंतिम उपन्यास है। लेकिन अब तक की उनकी कृतियों में बेजोड़, बेमिसाल और यादगार कृति है। लेखक की प्रौढ़ लेखनी से सृजित यह कृति अपनी विशेषताओं और विलक्षणताओं की वजह से हिन्दी जगत के लिए न सिर्फ उल्लेखनीय है,बल्कि अपने प्रभाव में बेहद असरदार तथा श्रेष्ठ साहित्य के निकष पर भी कालजयी कृति है।