पतरकी की कहानी है तो काल्पनिक लेकिन यह कहानी जैसी नहीं लगती । पढ़ते हुए लगता है मानो हमारे आस - पास ही सब कुछ घटित हो रहा हो और हम हर घटना के साक्षी बन रहे हों । इसके हर पात्र जाने - पहचाने से ,हमारे बीच के ही लगते हैं जो पाठक का कहानी के साथ जबरदस्त जुड़ाव कराने में सहायक हैं । सामाजिक बुराइयों के रेखांकन और उसके परिणामों के प्रदर्शन में कहीं भी , किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह का न पाया जाना इस रचना की USP है । बेहद सहज,सरल और सधी हुई भाषा शैली से सज्जित यह उपन्यास अपने प्रवाह व संदेशपरक कथावस्तु के कारण खूब सराहा जा रहा है । प्रकाशन के दो महीनों में ही इसके प्रथम संस्करण की सारी प्रतियों का बिक जाना इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है ।
पतरकी की कहानी है तो काल्पनिक लेकिन यह कहानी जैसी नहीं लगती । पढ़ते हुए लगता है मानो हमारे आस - पास ही सब कुछ घटित हो रहा हो और हम हर घटना के साक्षी बन रहे हों । इसके हर पात्र जाने - पहचाने से ,हमारे बीच के ही लगते हैं जो पाठक का कहानी के साथ जबरदस्त जुड़ाव कराने में सहायक हैं । सामाजिक बुराइयों के रेखांकन और उसके परिणामों के प्रदर्शन में कहीं भी , किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह का न पाया जाना इस रचना की USP है । बेहद सहज,सरल और सधी हुई भाषा शैली से सज्जित यह उपन्यास अपने प्रवाह व संदेशपरक कथावस्तु के कारण खूब सराहा जा रहा है । प्रकाशन के दो महीनों में ही इसके प्रथम संस्करण की सारी प्रतियों का बिक जाना इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है ।