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Swayam Prakash ki Lokpriya Kahaniyan

Swayam Prakash ki Lokpriya Kahaniyan

Swayam Prakash
0/5 ( ratings)
स्वयं प्रकाश हिंदी के जाने-माने कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ हिंदी के पाठकों और आलोचकों में समान रूप से लोकप्रिय रही हैं। सत्तर के दशक से अपना कहानी लेखन प्रारंभ करनेवाले स्वयं प्रकाश की पहचान ऐसे कहानीकार के रूप में है, जो सहजता से अपनी बात कह देते हैं और उनकी कोई कहानी ऐसी नहीं होती, जिसमें सामाजिकता का उद्देश्य न हो। इस तरह से हिंदी में प्रेमचंद, यशपाल, भीष्म साहनी, हरिशंकर परसाई और अमरकांत की परंपरा के वे बड़े कथाकार हैं। भारतीय जीवन के मर्म को उनकी कहानियों में देखा जा सकता है। मध्य वर्ग के राग-विराग हों या नौकरीपेशा सामान्य गृहस्थी के द्वंद्व, युवा वर्ग की उलझनें हों या महिलाओं के संघर्ष—स्वयं प्रकाश की कहानियाँ पूरे भारतीय समाज को अपने दायरे में लेती हैं। वे उन लोगों में नहीं हैं, जो भारतीय समाज की हलचल से निराश हो जाएँ, बल्कि वे इसी समाज से आशा के नए-नए स्रोत खोजते हैं और अपने पाठकों को नए उत्साह से भर देते हैं। अनुक्रम पाठ से पहले —Pgs. 5 1. नाचनेवाली कहानी —Pgs. 11 2. कानदाँव —Pgs. 18 3. गौरी का गुस्सा —Pgs. 24 4. तीसरी चिट्ठी —Pgs. 33 5. बर्डे —Pgs. 42 6. जंगल का दाह —Pgs. 50 7. इनका जमाना —Pgs. 58 8. परिधि —Pgs. 65 9. ढलान पर —Pgs. 74 10. सम्मान —Pgs. 86 11. अविनाश मोटू उर्फ एक आम आदमी —Pgs. 96 12. उल्टा पहाड़ —Pgs. 104 13. सूरज कब निकलेगा —Pgs. 127 14. या तुमने कभी कोई सरदार भिखारी देखा? —Pgs. 135 15. मंजू फालतू —Pgs. 143 16. नैनसी का धूड़ा —Pgs. 154 17. संधान —Pgs. 165
Pages
176
Format
Paperback
ISBN 13
9789351868965

Swayam Prakash ki Lokpriya Kahaniyan

Swayam Prakash
0/5 ( ratings)
स्वयं प्रकाश हिंदी के जाने-माने कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ हिंदी के पाठकों और आलोचकों में समान रूप से लोकप्रिय रही हैं। सत्तर के दशक से अपना कहानी लेखन प्रारंभ करनेवाले स्वयं प्रकाश की पहचान ऐसे कहानीकार के रूप में है, जो सहजता से अपनी बात कह देते हैं और उनकी कोई कहानी ऐसी नहीं होती, जिसमें सामाजिकता का उद्देश्य न हो। इस तरह से हिंदी में प्रेमचंद, यशपाल, भीष्म साहनी, हरिशंकर परसाई और अमरकांत की परंपरा के वे बड़े कथाकार हैं। भारतीय जीवन के मर्म को उनकी कहानियों में देखा जा सकता है। मध्य वर्ग के राग-विराग हों या नौकरीपेशा सामान्य गृहस्थी के द्वंद्व, युवा वर्ग की उलझनें हों या महिलाओं के संघर्ष—स्वयं प्रकाश की कहानियाँ पूरे भारतीय समाज को अपने दायरे में लेती हैं। वे उन लोगों में नहीं हैं, जो भारतीय समाज की हलचल से निराश हो जाएँ, बल्कि वे इसी समाज से आशा के नए-नए स्रोत खोजते हैं और अपने पाठकों को नए उत्साह से भर देते हैं। अनुक्रम पाठ से पहले —Pgs. 5 1. नाचनेवाली कहानी —Pgs. 11 2. कानदाँव —Pgs. 18 3. गौरी का गुस्सा —Pgs. 24 4. तीसरी चिट्ठी —Pgs. 33 5. बर्डे —Pgs. 42 6. जंगल का दाह —Pgs. 50 7. इनका जमाना —Pgs. 58 8. परिधि —Pgs. 65 9. ढलान पर —Pgs. 74 10. सम्मान —Pgs. 86 11. अविनाश मोटू उर्फ एक आम आदमी —Pgs. 96 12. उल्टा पहाड़ —Pgs. 104 13. सूरज कब निकलेगा —Pgs. 127 14. या तुमने कभी कोई सरदार भिखारी देखा? —Pgs. 135 15. मंजू फालतू —Pgs. 143 16. नैनसी का धूड़ा —Pgs. 154 17. संधान —Pgs. 165
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176
Format
Paperback
ISBN 13
9789351868965

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