समाज की काल चेतना से जुड़कर 'इतिहास,परंपरा और आधुनिकता' जैसी अवधारणाओं ने आज अनेक अर्थ ग्रहण कर लिए हैं और इनकी व्याख्या और उपयोग का दायरा बंता बिगड़ता रहा है। आमतौर पर संस्कृति में होने वाले परिवर्तन और उसकी निरंतरता को आत्मसात करने के लिए इन शब्दों का व्यवहार किया जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में जो विचार उभरे हैं वे निर्विवाद रूप से इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि बिना विचारे पशिम का अंधानुकरण भारतीय समाज को आगे नहीं ले जा सकता।
समाज की काल चेतना से जुड़कर 'इतिहास,परंपरा और आधुनिकता' जैसी अवधारणाओं ने आज अनेक अर्थ ग्रहण कर लिए हैं और इनकी व्याख्या और उपयोग का दायरा बंता बिगड़ता रहा है। आमतौर पर संस्कृति में होने वाले परिवर्तन और उसकी निरंतरता को आत्मसात करने के लिए इन शब्दों का व्यवहार किया जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में जो विचार उभरे हैं वे निर्विवाद रूप से इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि बिना विचारे पशिम का अंधानुकरण भारतीय समाज को आगे नहीं ले जा सकता।