नाटक का नायक अविनाश रूढ़िवादी समाज के खोखले नियमों से विद्रोह कर घर त्याग देता है। जिससे पिता को काफी आघात पहुँचता है। एक ही पुत्र होने के कारण उनके बाद परिवार की डोर को आगे कौन सँभालेगा। परन्तु वह इन तमाम बातों की चिन्ता किये बिना घर छोड़ देता है। बाहर निकल उसे समस्त समाज का ढाँचा ही पूरी तरह से अस्त-व्यस्त दिखाई पड़ता है। वह देखता है छुआछूत से ग्रस्त लोग, व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने सारे सिद्धान्तों को ताक पर रख देने वाले लोग, क्या गाँव, क्या शहर सभी पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुके हैं। इन तमाम दोषों की चिन्ता किये बिना आगे बढ़ता जाता है एवं जितना आगे जाता है उतना ही इस वातावरण को और भी अधिक खोखला पाता है।
नाटक का नायक अविनाश रूढ़िवादी समाज के खोखले नियमों से विद्रोह कर घर त्याग देता है। जिससे पिता को काफी आघात पहुँचता है। एक ही पुत्र होने के कारण उनके बाद परिवार की डोर को आगे कौन सँभालेगा। परन्तु वह इन तमाम बातों की चिन्ता किये बिना घर छोड़ देता है। बाहर निकल उसे समस्त समाज का ढाँचा ही पूरी तरह से अस्त-व्यस्त दिखाई पड़ता है। वह देखता है छुआछूत से ग्रस्त लोग, व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने सारे सिद्धान्तों को ताक पर रख देने वाले लोग, क्या गाँव, क्या शहर सभी पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुके हैं। इन तमाम दोषों की चिन्ता किये बिना आगे बढ़ता जाता है एवं जितना आगे जाता है उतना ही इस वातावरण को और भी अधिक खोखला पाता है।