ये कहानी दरअसल एक ऐसी औरत की है जो घर से मरने के लिए निकली थी, मौत की कगार से लौट कर फिर से जीती है। उसने समझ लिया था कि यदि जिंदगी के उलझनों को सुलझाना है तो जिंदगी से बिलकुल आँख मिला कर चलनी चाहिए। न कोई मदद छोटी होती है न कोई कोशिश, बल्कि इन्ही नन्हे कदमों से चल कर ही सफलता की राह प्रशस्त होती है। यदि मुश्किलों से डरना छोड़ दिया जाए तो वो कम पीड़ान्तक होती हैं। जब तक आत्मा द्रवित थी आशा दुखित थी; आत्मा के बलवती आशान्वित होने के साथ साथ वह भी पल्लवित होने लगी सुखी महसूस करने लगी। एक बार आत्मा से सकारात्मक तरंगे ध्वनित होने लगी जीवन में जगत से सकारात्मकता आकर्षित होने लगी उसकी तरफ। जब ठान लिया कि कुछ करना है तो होने भी लगा कुछ।
ये कहानी दरअसल एक ऐसी औरत की है जो घर से मरने के लिए निकली थी, मौत की कगार से लौट कर फिर से जीती है। उसने समझ लिया था कि यदि जिंदगी के उलझनों को सुलझाना है तो जिंदगी से बिलकुल आँख मिला कर चलनी चाहिए। न कोई मदद छोटी होती है न कोई कोशिश, बल्कि इन्ही नन्हे कदमों से चल कर ही सफलता की राह प्रशस्त होती है। यदि मुश्किलों से डरना छोड़ दिया जाए तो वो कम पीड़ान्तक होती हैं। जब तक आत्मा द्रवित थी आशा दुखित थी; आत्मा के बलवती आशान्वित होने के साथ साथ वह भी पल्लवित होने लगी सुखी महसूस करने लगी। एक बार आत्मा से सकारात्मक तरंगे ध्वनित होने लगी जीवन में जगत से सकारात्मकता आकर्षित होने लगी उसकी तरफ। जब ठान लिया कि कुछ करना है तो होने भी लगा कुछ।